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Wednesday 19 September 2012


                    लघु कथा                                                                 

आग
कोयले की खदानों में काम करने वाले मज़दूर।काले चेहरे ,काली शर्ट ,गमबूट और हेलमेट ।यही पहनावा है ,कई बार तो आप पहचान भी नहीं पायेंगे कि गनिलाल कौन है और करीमचंद कौन ?चेहरे के साथ शरीर के खुले हिस्से में काली धूल का जमाव ।शाम होते ही खदानों के  पास की बस्तियों में अजीब सी रंगत देखने को मिलती है ।सूर्य की लालिमा में गोधुली नहीं ,घर के चूल्हों से निकलने वाला धुआँ व्याप्त रहता है ।धुएं की महक में कोई अपरिचित शायद ही सांस ले सके ,लेकिन यह महक तो खदान की जिंदगियों का एक हिस्सा है ।रात होते - होते आसमान के सितारों की तरह छोटे - छोटे मद्धिम बल्ब एक - एक कमरे की छोटी -छोटी मकानों में टिमटिमाने लगते हैं ।फिर शुरू होती है दिन भर की थकावट को मिटाने की  एक नायाब कोशिश ।जिनकी रात की शिफ्ट नहीं है ,वो खाने की जगह दारू पर ही गुजारा करते हैं ।अकेली पड़ी विधवाएँ या जवान बेटियाँ जिनके पास गुज़ारे  का एक ही साधन है - अपने जिस्म को परोस देना ,वे भी चल पड़ती हैं अपने धंधे पे 
                                                  यही वह समय होता है जब कोयला चोरी करने वाले अपने  मिशन पर निकल पड़ते हैं ।बंद पड़ी खदानों से चोरी - चोरी कोयला निकालने वालों में हरिया भी है ।तीन बच्चों और बीबी के साथ रहने वाला हरिया ।घर का तंग माहौल जवान होते बच्चों को बाँध सका ।आठवीं तक पढने के बाद बड़ा बेटा घर से भाग गया ।हरिया ने कोई खोज - खबर नहीं ली ।एक निवाला कम होना और गज भर ज़मीं पसरने के लिए मिल जाना रिश्तों की गर्माहट को जाने कब का मार चूका था ।चोरी के कोयले को ऊँचे  दामों पर बेच कर उसने बहुत जल्द पैसे बना लिए ।गालियों से बात करने वाला हरिया धीरे - धीरे पत्नी और दोनों बच्चों को भी इस गैर क़ानूनी काम में लगा दिया ।ज्यादा हाथ ,ज्यादा पैसे ।पुलिस ने कई बार दबोचा पर हरिया जेब गर्म करने की कला में भी माहिर निकला
                                             वह बरसाती रात हर दिन की तरह नहीं थी ।पूरा परिवार खुले खदान की साठ मीटर की गहराई पर कोयला निकालने में संलग्न था ।घुप्प अँधेरा ,टार्च की मद्धिम रोशनी।तभी एक जानलेवा गैस के रिसाव से उनमे हलचल मच गयी ।भागने के क्रम में ही दो दिनों की बारिश में नर्म और कमज़ोर परत एक घुप्प सी आवाज़ के साथ नीचे धंस गयी ।साथ में दफ़न हो गए हरिया की पत्नी और बच्चे ।हरिया के सर से दारू का असर काफूर हो चूका था ।हाँफते - हाँफते वह बाहर निकला और चाह कर भी अपनों का मृत शरीर खींच पाया ।सिर धुनता हुआ पागलों की तरह वह उसी इंस्पेक्टर के समक्ष था जिसको उसने खरीद रखा था ।उसके हाथ इंस्पेक्टर के गले पर मज़बूत होते गए गले से रुन्धती आवाज़ में वह इतना ही बोल पा रहा था कि उसने उसके गलत काम को सख्ती से क्यों रोका?अब तो पूरे घर में जगह ही जगह थी सोने को ...पर नींद कहाँ ! पश्चाताप की आग में आज उसे अपने बड़े बेटे का भी चेहरा याद रहा था ।खदान की आग दिल की आग बन गयी थी ।हरिया जल कर झुलस चूका था
                                          आज का सूर्योदय उसके लिए ख़ास था ।बड़े साहब के आगे अपने गुनाहों को कबूल करते हुए आत्म - समर्पण ।वह चाहता था एक बार मुंशी ,दारा,बिल्ला आदि उसके दोस्त उससे मिलने आयें ,जिन्हें वह इस अनजानी राह से अवगत करा सके ।पर जेल की काल कोठरी से हर किसी ने किनारा कर लिया था ।यत्रवत चलती रही ...वही दिनचर्या

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