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Thursday 28 March 2013


 मुझे थाम लेना ।


पतझड़ सी वीरानगी
नस - नस में भर जाती 
नवसृजन की आस है तुमसे 
तुम वसंत बन जाना ।
घने बादलों से जब -जब 
सूरज सुनहरा ढंकता है 
विकल मन बारम्बार पुकारता 
तुम संबल बन जाना ।
दुबिया पर पड़ी 
ओस की निरह बूंद ही सही 
आत्मसात करने मुझ को 
तुम दिवास्पति बन जाना ।
जीवन राग सुरीला 
शब्दों की लड़ियाँ गर तुम्हे पिरोये 
मैं रागिनी बावरी सी गुनगुनाऊं 
वैसा गीत बन जाना ।
अटूट बंधन ,अमर प्रेम हमारा 
जीवन साथी हम रिश्ता  जन्मों का  
शिखा बन सुबहो शाम जलूं 
तुम मेरे  दीप बन जाना ।
तुम काया मैं साया 
तुम धूप मैं ताप 
मैं बहती धारा
तुम कलकल निनाद बन जाना ।
बिन तुहारे मेरा वजूद नहीं 
तुम हो तो मैं हूँ 
रोज़मर्रा की बेशुमार बातों में 
यह बात भूल न जाना ।
जीवन के झंझावात में 
जो घिर जाऊं अनायास 
पास आकर मेरे 
तुम मुझे थाम लेना ।

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर!
    --
    होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
    इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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