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Tuesday 28 April 2015

मेरा साया 
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फ़ज़ाओं  की सरगोशियाँ खामोश हैं 
एक आपसे शहर गुलज़ार होता है। 
दिल की बातें आतीं नहीं जुबां पे 
रश्क इसका बार - बार होता है। 
ताल्लुक आपसे बस ऐसा ही है 
धरती का जैसे बादल से होताहै। 
रात कट जाती है आँखों में 
उधर भी क्या यही मंज़र होता है।
इस राह की कोई मंज़िल  नहीं  
जान कर भी दिल अनजान होता है। 
कोई शिकवा नहीं ज़िन्दगी से 
इतना भी साथ किसको नसीब होता है। 
अब जाने पर हो गए हो  आमादा तो 
देखें कब मिलने का दस्तूर होता है।
 हश्र हो देखने की तो धूप में आना 
तुम्हारे साथ मेरा साया होता है। ...copyright..kv

1 comment:

  1. bahut sundar kavita ji aap hamare sahitya patrik a ke liye bhi likiye editor.sahityanibandh@gmail.com sampadak rajat

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